Wednesday, December 31, 2008
साल २००८ कोलकाता और मै
कोल्कता का वो निम्ताला घाट याद आया जहाँ डोम के बच्चे किसी धनि सेठ की अर्थी देख नाचने लगते थे..... आज अच्छा खाना जो मिलेगा उन्हें।
हावडा स्टेशन का राजू याद आया जो हुगली के घाट पर पीपल के नीचे रहता है , स्टेशन पर बोतल चुनता है, पानी के बोतल का आठ आना और कोल्दिंक्स के बोतल का चार आना, मोटी वाली आंटी इतना ही देती है ............बडे शान से बताता है कि 8 और 9 नम्बर प्लेटफोर्म उसका है ............... आगे बोलता है अभी 12 का हूँ न 21 का होते-होते 1 से 23 नम्बर प्लेटफोर्म पर बस वोही बोटेल चुनेगा।
टोलीगंज के मंटू दा याद आए जो सिंगुर काम करने गए थे ...... वापस लोट आए ........ बोलते हैं हस्ते हुए ...काजटा पावा जाबे.....57 के मंटू दा आपनी मुस्कराहट में दर्द छिपाने की नाकाम कोशिश कर रहे हैं। पाँच कुवारी बेटिया, तीन की उम्र 30 के ऊपर है।
आज जब रात को हम सभी न्यूज़ रूम से साल भर की खबरे देख रहे होंगे तो हमे वो डोम के बच्चे, वो स्टेशन का राजू, टोलीगंज के मंटू दा नही दिखेंगे।
साल २००८ कोलकाता और मै
हलाकि साल के अंत में परम्परा स्वरुप आप साल की हर बड़ी खबर टीवी पर देखेंगे लेकिन एक साधारण आदमी (मैने) क्या देखा और याद रहा उसकी एक झलक.....
कोल्कता का वो निम्ताला घाट याद आया जहाँ डोम के बच्चे किसी धनि सेठ की अर्थी देख नाचने लगते थे..... आज अच्छा खाना जो मिलेगा उन्हें।
हावडा स्टेशन का राजू याद आया जो हुगली के घाट पर पीपल के नीचे रहता है , स्टेशन पर बोतल चुनता है, पानी के बोतल का आठ आना और कोल्दिंक्स के बोतल का चार आना, मोटी वाली आंटी इतना ही देती है ............बडे शान से बताता है कि 8 और 9 नम्बर प्लेटफोर्म उसका है ............... आगे बोलता है अभी 12 का हूँ न 21 का होते-होते 1 से 23 नम्बर प्लेटफोर्म पर बस वोही बोटेल चुनेगा।
टोलीगंज के मंटू दा याद आए जो सिंगुर काम करने गए थे ...... वापस लोट आए ........ बोलते हैं हस्ते हुए ...काजटा पावा जाबे.....57 के मंटू दा आपनी मुस्कराहट में दर्द छिपाने की नाकाम कोशिश कर रहे हैं। पाँच कुवारी बेटिया, तीन की उम्र 30 के ऊपर है।
आज जब रात को हम सभी न्यूज़ रूम से साल भर की खबरे देख रहे होंगे तो हमे वो डोम के बच्चे, वो स्टेशन का राजू, टोलीगंज के मंटू दा नही दिखेंगे।
2 comments:
- राजीव करूणानिधि said...
-
''वो डोम के बच्चे, वो स्टेशन का राजू, टोलीगंज के मंटू दा नही दिखेंगे।'' सही कहा आपने संभव जी. अच्छी लेखनी है, बधाई.
-
January 2, 2009 at 3:00 PM
- डॉ .अनुराग said...
-
शायद कुछ वैसे ही जैसे ..मैंने आज़ादी की सुबह उसी पीपल के पेड़ के नीचे उस बूढे मोची को देखा था जिससे एक पुलिस वाला फ्री में पोलिश करवा रहा था.....पिछले २० सालो से मोची वही है...आस पास जरूर एक बैंक का ऐ टी एम् खुल गया है...मै ने अपनी साड़ी पढ़ाई पूरी कर ली.....ओर प्रेक्टिस में भी आ गया....पर वो मोची वही....है .यही जीवन है..जिसके कई रंग है .कौन सा पैमाना है भगवान् का ....ये समझ नही आता ?कही तो कुछ ग़लत है ???
-
January 3, 2009 at 7:19 PM
About Me

- कुमार संभव
- Ranchi, Kolkatta, New Delhi, India
- मै एक सधारण परिवार से आता हूँ. पांच वर्षों से पत्रकारिता सीख और कर रहा हूँ...बहूत कुछ कहना और सुनना चाहता हूँ... रांची से स्कूलिंग फिर कोलकाता से मॉस कम्युनिकेशन मे स्नातक और कोलकाता फिल्म और टेलिविज़न इंस्टिट्यूट से डिप्लोमा के बाद फिलहाल एक निजी चैनल से जुडा हुआ हूँ.
Followers
Blog Archive
मेरे पसंदीदा ब्लोग्स
-
जादू टूटता भी तो है। - There are monsters inside my heart. Every couple of days or months I need to go on a holiday to let them lose in the wilderness of solitude. They graze u...1 month ago
-
तुम्हारे लिए - मैं उसकी हंसी से ज्यादा उसके गाल पर पड़े डिम्पल को पसंद करता हूँ । हर सुबह थोड़े वक्फे मैं वहां ठहरना चाहता हूँ । हंसी उसे फबती है जैसे व्हाइट रंग । हाँ व्...5 years ago
-
Ebook , by Françoise Gilot Carlton Lake - Ebook , by Françoise Gilot Carlton Lake Es gibt zahlreiche Bücher, die Aussichten zu prüfen, in dieser letzten Zeit sein kann. Dennoch könnte es unmöglich...5 years ago
-
मोदी की सबसे बड़ी चुनौती - मेरा लेख पढ़ें http://abpnews.newsbullet.in/blogtest/74/5474211 years ago
-
.... तो ये प्रियभांशुओं के पीछे बंदूक लेकर दौड़े - आरा के एक गाँव की बात है । तक़रीबन १०-१२ साल पहले की। राजपूत परिवार की एक बेटी जो आरा में रह कर पढाई करती थी उसने अपने एक साथी के साथ भाग कर शादी कर ली... ...15 years ago
-
चंचल बयार.... - एक चंचल बयारों सा मुझको मिला वो जैसे सहरा में पानी का दरिया हँसा हो.... बिलखते दरख्तों की मुस्कान बन कर मुहब्बत की बारिश को बरसा गया वो.... मुफ़लिस से जीवन म...16 years ago
-
-
2 comments:
''वो डोम के बच्चे, वो स्टेशन का राजू, टोलीगंज के मंटू दा नही दिखेंगे।'' सही कहा आपने संभव जी. अच्छी लेखनी है, बधाई.
शायद कुछ वैसे ही जैसे ..मैंने आज़ादी की सुबह उसी पीपल के पेड़ के नीचे उस बूढे मोची को देखा था जिससे एक पुलिस वाला फ्री में पोलिश करवा रहा था.....पिछले २० सालो से मोची वही है...आस पास जरूर एक बैंक का ऐ टी एम् खुल गया है...मै ने अपनी साड़ी पढ़ाई पूरी कर ली.....ओर प्रेक्टिस में भी आ गया....पर वो मोची वही....है .यही जीवन है..जिसके कई रंग है .कौन सा पैमाना है भगवान् का ....ये समझ नही आता ?कही तो कुछ ग़लत है ???
Post a Comment