Thursday, August 21, 2008

पत्रकारिता झारखण्ड में

गए हफ्ते झारखण्ड सुर्खियों में रहा। खबरिया चैनल के सारे पत्रकार अचानक व्यस्त हो गए। किसी-किसी चैनल के रिपोर्टर २५-२५ फोनों करते पाए गए। चलिए अच्छा लगा कुछ तो हो रहा है । लेकिन ख़बर कुछ और है । ख़बर लेने के पीछे जो गला काट प्रतियोगिता हुई वो बड़ा मजेदार रहा। इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया के पत्रकार के बीच हाथा पाई तक की नौबत आगई। कुछ लोग अपने फोनों में शिबू सोरेन को गुरूजी कह कर संबोधित कर रहे थे । जहाँ तक मेरी समझ है पत्रकारिता में किसी को विशेषण से संबोधित नही करनी चाहिये । कुछ लोंगो को तो झारखण्ड विधान सभा की सीटों की गिनती नही पता है वो यहाँ एक राष्ट्रीय चैनल के व्यूरो हेड हैं । उदहारण तो कई हैं। सोचने वाली बात है की लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ किनके कर कमलों में है??
दुष्यंतजी के शब्दों में :
जितना सोचा था ज्यादा निकला
जिसकी उठाई पूँछ वो मादा निकला

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पत्रकारिता झारखण्ड में

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गए हफ्ते झारखण्ड सुर्खियों में रहा। खबरिया चैनल के सारे पत्रकार अचानक व्यस्त हो गए। किसी-किसी चैनल के रिपोर्टर २५-२५ फोनों करते पाए गए। चलिए अच्छा लगा कुछ तो हो रहा है । लेकिन ख़बर कुछ और है । ख़बर लेने के पीछे जो गला काट प्रतियोगिता हुई वो बड़ा मजेदार रहा। इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया के पत्रकार के बीच हाथा पाई तक की नौबत आगई। कुछ लोग अपने फोनों में शिबू सोरेन को गुरूजी कह कर संबोधित कर रहे थे । जहाँ तक मेरी समझ है पत्रकारिता में किसी को विशेषण से संबोधित नही करनी चाहिये । कुछ लोंगो को तो झारखण्ड विधान सभा की सीटों की गिनती नही पता है वो यहाँ एक राष्ट्रीय चैनल के व्यूरो हेड हैं । उदहारण तो कई हैं। सोचने वाली बात है की लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ किनके कर कमलों में है??
दुष्यंतजी के शब्दों में :
जितना सोचा था ज्यादा निकला
जिसकी उठाई पूँछ वो मादा निकला

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