Wednesday, October 15, 2008
वैसे पुण्य प्रसून बाजपेई जी से मिलना आप में से बहुतों के लिए साधारण बात है। लेकिन मेरे जेसे नए पत्रकार के लिए बड़ी बात है। मेरे बात चीत का मज्मू कुछ इस प्रकार है।
प्रश्न: सर मुझे काम चाहिय। कोलकाता से सहारा समय के लिए काम कर चुका हूँ। लेकिन दिल्ली में नौकरी की तलाश में भटक रहा हूँ। कई जगह प्रयास किया कोई जवाब नही मिला। यही समझ में आया की God Father जरूरी है। इसलिए आप के पास आया हूँ।
बाजपेई : सम्भव नौकरी करना चहाते हो या पत्रकारिता। अगर नौकरी चाहिए तो ग़लत जगह आऐ हो चैनल में नौकरी संपादक नही HR देता है। और वो देखता है कि Cost to Company कितना आएगा, Product जो मै दूंगा उसका इस्तेमाल company कर पायेगी कि नही। एसे में सम्भव तुमसे जायदा फायेदा company को राजू श्रीवास्तव देगा।
Monday, October 13, 2008
यशवंत जी की भड़ास
मै धर्म की इस लडाई पर इतना ही कहूँगा की धर्म सदा से पर्सनल चीज रही है और उसे सड़क पर ले के नही आना चाहिय। मुर्ख इस पर बहस करते हैं ? और मेरे भडासी भाईयों कई मुद्दें हैं उठाने को। अब समय आगया है की हम आगे बढ़ें और सार्थक बहस का हिस्सा बने।
जय भडासी
Kumar sambhav
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मुलाकात पुण्य प्रसून बाजपेई के साथ
वैसे पुण्य प्रसून बाजपेई जी से मिलना आप में से बहुतों के लिए साधारण बात है। लेकिन मेरे जेसे नए पत्रकार के लिए बड़ी बात है। मेरे बात चीत का मज्मू कुछ इस प्रकार है।
प्रश्न: सर मुझे काम चाहिय। कोलकाता से सहारा समय के लिए काम कर चुका हूँ। लेकिन दिल्ली में नौकरी की तलाश में भटक रहा हूँ। कई जगह प्रयास किया कोई जवाब नही मिला। यही समझ में आया की God Father जरूरी है। इसलिए आप के पास आया हूँ।
बाजपेई : सम्भव नौकरी करना चहाते हो या पत्रकारिता। अगर नौकरी चाहिए तो ग़लत जगह आऐ हो चैनल में नौकरी संपादक नही HR देता है। और वो देखता है कि Cost to Company कितना आएगा, Product जो मै दूंगा उसका इस्तेमाल company कर पायेगी कि नही। एसे में सम्भव तुमसे जायदा फायेदा company को राजू श्रीवास्तव देगा।
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यशवंत जी की भड़ास |
पिछले कुछ दिनों से भड़ास पर धर्म-अधर्म, सीता-राम, दशरथ की चर्चा जोरों पर हैं। एक दुसरे को जम कर गली दी जा रही है। तर्क वितर्क दिए जा रहे हैं। मेरा सभी से ये पूछना है की क्या इस तरह की बहस जरुरी है? मै न आस्तिक हूँ न नास्तिक मै राम को भी मानता हूँ और रहीम इशु सभी के लिए इज्जत रखता हूँ। मैं जनता हूँ की कुछ भडासी भाई मुझे safe zone में जाने का आरोप लगा सकते है कुछ मुझे चुतिया और कायर कहेंगे लेकिन जो मुझे जानते है उनके लिए ये मानना कठिन नही है।
मै धर्म की इस लडाई पर इतना ही कहूँगा की धर्म सदा से पर्सनल चीज रही है और उसे सड़क पर ले के नही आना चाहिय। मुर्ख इस पर बहस करते हैं ? और मेरे भडासी भाईयों कई मुद्दें हैं उठाने को। अब समय आगया है की हम आगे बढ़ें और सार्थक बहस का हिस्सा बने।
जय भडासी
Kumar sambhav
About Me
- कुमार संभव
- Ranchi, Kolkatta, New Delhi, India
- मै एक सधारण परिवार से आता हूँ. पांच वर्षों से पत्रकारिता सीख और कर रहा हूँ...बहूत कुछ कहना और सुनना चाहता हूँ... रांची से स्कूलिंग फिर कोलकाता से मॉस कम्युनिकेशन मे स्नातक और कोलकाता फिल्म और टेलिविज़न इंस्टिट्यूट से डिप्लोमा के बाद फिलहाल एक निजी चैनल से जुडा हुआ हूँ.
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